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पालक की खेती

पालक की खेती के लिए इन किस्मों का चयन करना लाभकारी साबित होगा

पालक की खेती के लिए इन किस्मों का चयन करना लाभकारी साबित होगा

किसान भाई बेहतरीन मुनाफा पाने के लिए पालक की खेती कर सकते हैं। बतादें, कि भारत में पालक की खेती रबी, खरीफ एवं जायद तीनों फसल चक्र में की जाती है। 

इसके लिए खेत में बेहतर जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए। साथ ही, हल्की दोमट मृदा में पालक के पत्तों का शानदार उत्पादन होता है।

किसान भाई इन बातों का विशेष रूप से ख्याल रखें

एक हेक्टेयर भूमि पर
पालक की खेती करने के लिए 30 किग्रा बीज की जरूरत पड़ती है। वहीं, छिटकवां विधि के माध्यम से खेती करने पर 40 से 45 किग्रा बीज की जरूरत होती है। 

बुवाई से पूर्व 2 ग्राम कैप्टान प्रति किलोग्राम बीजों का उपचार करें, जिससे पैदावार अच्छी हो। पालक की बुवाई के लिए कतार से कतार की दूरी 25–30 सेंटीमीटर और पौध से पौध की 7–10 सेंटीमीटर की दूरी रखें। 

पालक की खेती के लिए जलवायु एवं मिट्टी के अनुसार ज्यादा उत्पादन वाली उन्नत किस्मों का चयन कर सकते हैं।

ऑल ग्रीन

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि 15 से 20 दिन में हरे पत्तेदार पालक की किस्म तैयार हो जाती है। एक बार बुवाई करने के उपरांत यह छह से सात बार पत्तों को काट सकता है। 

यह किस्म बेशक ज्यादा उत्पादन देती है। परंतु, सर्दियों के दौरान खेती करने पर 70 दिनों में बीज और पत्तियां लगती हैं।

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पूसा हरित

साल भर की खपत को सुनिश्चित करने के लिए बहुत सारे किसान पूसा हरित से खेती करते हैं। पालक की बढ़वार सीधे ऊपर की ओर होती है। 

साथ ही, इसके पत्ते गहरे हरे रंग के बड़े आकार वाले होते हैं। क्षारीय जमीन पर इसकी खेती करने के बहुत सारे फायदे हैं।

देसी पालक

देसी पालक बाजार के अंदर बेहद अच्छे भाव में बिकता है। देसी पालक की पत्ती छोटी, चिकनी और अंडाकार होती हैं। यह बेहद शीघ्रता से तैयार हो जाती है। इस वजह से ज्यादातर किसान भाई इसकी खेती करते हैं।

विलायती पालक

विलायती पालक के बीज गोल एवं कटीले होते हैं। कटीले बीजों को पहाड़ी एवं ठंडे स्थानों में उगाना ज्यादा फायदेमंद होता है। गोल किस्मों की खेती भी मैदानों में की जाती है।

सर्दियों में पालक की जबरदस्त मांग होती है, किसान इसकी उन्नत किस्मों का चयन करें

सर्दियों में पालक की जबरदस्त मांग होती है, किसान इसकी उन्नत किस्मों का चयन करें

पालक की प्रमुख किस्मों में सम्पूर्ण हरा, पूसा हरित, पूसा ज्योति, जोबनेर ग्रीन एवं हिसार सेलेक्शन-23 सर्वाधिक उगाई जाने वाली प्रजाति होती हैं। आज हम आपको इन किस्मों के साथ-साथ इनकी ज्यादा मांग के विषय में जानकारी देंगे। सर्दियों का आगमन होते ही सबसे ज्यादा जो चीजें खाई जाने वाली होती हैं, उनमें हरी सब्जियों का नाम सर्व प्रथम आता है। इनमें सोया-मेथी, पालक, बथुआ एवं सरसों का साग सबसे विशेष होता है। इन्हीं में से आज हम आपको पालक की कुछ प्रमुख किस्मों के विषय में बताने जा रहे हैं। दरअसल, किसान पालक की खेती इसकी अधिक मांग के चलते भी करते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, पालक में सर्वाधिक आयरन की मात्रा होती है। जो हमारे स्वास्थ्य में हीमोग्लोबिन को संयमित करने में सहायता करती है। इसके चलते लोगों में इस सब्जी की सर्वाधिक मांग रहती है।

पालक की किस्म सम्पूर्ण हरा

पालक की इस प्रजाति के पौधे सामान्यतः हरे रंग के होते हैं। 5 से 20 दिन के समयांतराल पर इसकी पत्तियाँ मुलायम होकर कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं। बतादें कि इसकी 6 से 7 बार कटाई की जा सकती है। पालक की यह प्रमुख किस्म ज्यादा उत्पादन देती है। ठंड के मौसम में तकरीबन ढाई माह उपरांत बीज और डंठल आते हैं।

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पालक की किस्म पूसा ज्योति

यह पालक की एक और उन्नत किस्म होती है, जिसकी पत्तियाँ हद से ज्यादा मुलायम और बिना रेशे वाली होती हैं। इस प्रजाति के पौधे काफी तेजी से बढ़ते हैं। साथ ही, पत्तियां कटाई के लिए भी तैयार हो जाती हैं, जिससे पैदावार भी ज्यादा होती है।


पालक की किस्म जोबनेर ग्रीन

जोबनेर ग्रीन प्रजाति की मुख्य विशेषता यह है, कि इसे अम्लीय मृदा में भी पैदा किया जा सकता है। पालक की इस किस्म की समस्त पत्तियाँ एक समान हरी, मोटी, मुलायम और रसदार होती हैं। इसकी पत्तियाँ पकाने पर बड़ी आसानी से गल जाती हैं।


 

पालक की किस्म पूसा हरित

पालक की यह शानदार किस्म पहाड़ी इलाकों के लिए उपयुक्त होती है। साथ ही, इसको यहाँ संपूर्ण वर्षभर उगाया जा सकता है। इसके पौधे ऊपर की तरफ बढ़ते हैं। साथ ही, पत्तियों का रंग गहरा हरा होता है। इसके पत्ते आकार में भी काफी बड़े होते हैं। इस किस्म की विशेषता यह है, कि इसे विभिन्न प्रकार की जलवायु में उगाया जा सकता है। इसकी खेती अम्लीय मिट्टी में भी सुगमता से की जा सकती है।

पालक की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

पालक की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

पालक का नाम सुनते ही हमारे जेहन में एक हरे और चौड़े पत्ते वाली सब्जी आती है. जो की सर्दियों में हरा साग बना के खाई जाती है. पालक की सब्जी लोह और दूसरे विटामिन्स का बहुत अच्छा स्रोत है. इससे कैंसर-रोधक और ऐंटी ऐजिंग दवाइयां भी बनाई जाती है. इसके बहुत सारे अन्य फायदे भी हैं. यह हमारे पाचन, बाल, त्वचा आदि में भी बहुत महत्वपूर्ण है. अक्सर डॉक्टर्स हमें हरी सब्जी खाने की सलाह देते हैं इसके पीछे कारण यह है की इन हरी सब्जियों से हमें बहुत सारे विटामिन्स एंड मिनरल्स मिलते हैं जिससे की हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है.

मिटटी:

पालक के लिए दोमट एवं मिक्स बलुई मिटटी उपयुक्त रहती है. इसको मिटटी से मिलने वाले पोषक तत्व अगर सही से मिलें तो इसके पत्ते चौड़े और चमकदार होते है. पत्ते देख कर भी कोई बता सकता है की पालक को मिटटी से मिलने वाले पोषक तत्व कैसे हैं. कहने का तात्पर्य है की चमकदार हरा रंग और चौड़े पत्ते भरपूर पोषक तत्वों का सूचक है.

खेत की तैयारी:

पालक के लिए खेत की तैयारी करते समय ध्यान रहे की इसके खेत की जुताई अच्छे तरीके से कि जाये. खेत में खरपतवार न हो तथा खेत समतल होना चाहिए जिससे की उसमें पानी भरने कि संभावना न हो. इससे पालक कि फसल ख़राब न हो. पालक की फसल कच्ची फसल होती है यह ज्यादा पानी भरने पर गल जाती है. खेत की अंतिम जुताई करने से पहले अच्छे से गोबर का बना हुआ खाद मिला देना चाहिए. इससे रासायनिक खाद की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है. पालक की खेती के साथ-साथ इसको सर्दियों में पशुओ को भी खिलाते हैं. क्योकि यह लोह और विटामिन्स का बहुत अच्छा स्रोत है. इसलिए
पशुओं के लिए बोने वाले चारे में पालक और मेथी मिला देते हैं. इससे पशुओं को भरपूर विटामिन्स मिलते हैं तथा सर्दियों में उनका स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है.

बुवाई :

पालक के बीज की बुवाई या तो मशीन के द्वारा कराइ जानी चाहिए या फिर किसी विशेषज्ञ किसान द्वारा पवेर के करनी चाहिए. इसके पौधों में एक निश्चित दूरी रखनी चाहिए. जिससे की पौधे को फैलने की पर्याप्त जगह मिले.

पालक की उन्नत किस्में:

पालक की खेती इसकी पत्तियों के लिए की जाती है. इसकी पट्टी जीतनी चमकदार और हरी, चौड़ी होंगी उतनी ही अच्छी फसल मणि जाती है. इसकी फसल से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए क्षेत्र विशेष की जलवायु व भूमि के अनुसार किस्मों का चयन करना भी एक आवश्यक कदम है। साथ ही पालक की सफल खेती के लिए चयनित किस्मों की विशेषताओं का भी ध्यान रखना चाहिए। पालक की खेती के लिए कुछ निम्नलिखित किस्मों में से किसी एक किस्म का चयन कर किसान अपनी आय को बढ़ा सकते हैं- ऑलग्रीन, पूसा ज्योति, पूसा हरित, पालक नं. 51-16, वर्जीनिया सेवोय, अर्ली स्मूथ लीफ आदि।

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पालक की फसल के रोग:

जैसा की हम पहले बता चुके हैं कि पालक की फसल कच्ची फसल होती है तो इसमें रोग भी जल्दी ही लगते हैं. इसके रोग कीड़े के रूप में और अन्य बीमारी भी इसमें जल्दी लगाती हैं. जैसे: चेंपा: चेंपा रोग इसमें बहुत जल्दी लगता है. तथा इसके छोटे छोटे कीड़े पत्ती पर बैठ कर उसका रास चूस लेते हैं जिससे कि इसकी पत्तियां मुरझा जाती है. इसके इलाज के लिए अगर आप देसी इलाज देना चाहते हैं तो नीम कि पत्ती का घोल और उपले की राख बखेर देनी चाहिए. चिट्टेदार पत्ते: इस रोग में पालक के पत्ते पर लाल रंग का घेरा जैसा बन जाता है. उससे पत्तियां ख़राब होने लगती हैं जिससे ये बाजार में बेचने लायक नहीं होता है. मोज़ेक वायरस: यह वायरस लगभग 150 विभिन्न प्रकार की सब्जियों और पौधों को संक्रमित कर सकता है। हम पत्तियों के उतरे हुए रंग को देखकर इसकी पहचान कर सकते हैं। संक्रमित पत्तियों में पीले और सफेद धब्बे होते हैं। पौधों का आकार बढ़ना बंद हो जाता है और वे धीरे-धीरे मर जाते हैं। कोमल फफूंदी: यह बीमारी पेरोनोस्पोरा फेरिनोसा रोगाणु के कारण होती है। हम पत्तियों को देखकर इसकी पहचान कर सकते हैं। वे अक्सर मुड़ी हुई होती हैं और उसमें फफूंदी और काले धब्बे लगे होते हैं। स्पिनच ब्लाइट:  यह वायरस पत्तियों को प्रभावित करता है। संक्रमित पत्तियां बढ़ना बंद कर देती हैं और उनका रंग पीलापन लिए हुए भूरे रंग का होने लगता है।
ऑफ-सीजन पालक बोने से होगा मुनाफा दुगना : शादियों के सीजन में बढ़ी मांग

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दोस्तों, आज हम पालक (Spinach) के विषय में जरूरी चर्चा करेंगे। पालक भी उन हरी सब्जियों में से एक हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद ही आवश्यक होती है। पालक के विभिन्न फायदे लोगों में इसकी मांग को बढ़ाते हैं और यहां तक कि लोग पालक को ऑफ-सीजन में भी खाने की इच्छा रखते हैं। पालक की खेती, इसे बोने तथा पालक से होने वाले मुनाफे की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें। 

पालक की खेती

सबसे पहले हम आपको पालक के विषय में कुछ जरूरी बात बताना चाहेंगे। पालक की खेती सबसे पहले ईरान में उगाई गई थी। पालक की उत्पत्ति का राज सबसे पहला ईरान को माना जाता है। उसके बाद यह भारत में अनेक राज्यों में विभिन्न विभिन्न तरह से उगाई जाती है। हरी सब्जियों में पालक सबसे गुणकारी सब्जी है। आयरन काफी मात्रा में पालक में पाया जाता है। इनके गुणकारी होने से शरीर में रक्त की मात्रा को बढ़ावा मिलता है। लोग साल भर पालक को बड़े चाव के साथ खाना पसंद करते हैं। सर्दियों के मौसम में इनको और अधिक पसंद किया जाता है। पालक की खेती कर किसान काफी अच्छे धन की प्राप्ति करते हैं। 

ऑफ-सीजन में पालक की खेती

सबसे अच्छा मौसम सर्दियों का होता है पालक की खेती के लिए जो पालक सर्दियों में उगते हैं वह बहुत ही उत्तम किस्म के होते हैं। पालक के पौधे सर्दियों में गिरने वाले पाले को बिना किसी परेशानी के आसानी से सहन करने की क्षमता रखते हैं। इनका विकास भी काफी अच्छे से होता है। किसान पालक की फसल के लिए बलुई दोमट मिट्टी का उपयोग कर करते हैं। सर्दियों के मौसम में सामान्य तापमान पालक की खेती को बढ़ाता है तथा इसका उत्पादन भी होता है। 

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पालक की खेती के लिए मिट्टी का चयन

वैसे तो पालक के लिए औसत मिट्टी काफी होती है।अगर यह जैविक पदार्थों से भरपूर मिट्टी में उगाया जाए, तो और भी अच्छी तरह से विकसित होते हैं। किसानों के अनुसार मिट्टी का प्रकार और उसका पीएच भरी प्रकार से जांच लेना आवश्यक होता है। पालक के अच्छे विकास और उत्पत्ति के लिए उसका पीएच 6.5 से लेकर 6.8 तक पीएच होना चाहिए। रेतीली दोमट मिट्टी पालक की खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। पौधे को रोपण करने से पहले मिट्टी को भली प्रकार से विश्लेषण करना आवश्यक होता है। 

पालक की फसल के लिए खेत को तैयार

किसान पालक की अलग-अलग किस्मों को उगाने के लिए और फसलों से पालक ही अच्छी पैदावार करने के लिए मिट्टी को भली प्रकार से भुरभुरा करते हैं। पहली जुताई के दौरान खेतों को गहरा जोता जाता है और ध्यान रखने योग्य बातें इनकी पुराने बचे हुए अवशेषों को नष्ट कर दिया जाता है। खेतों को कुछ टाइम के लिए जुताई करने के बाद ऐसे ही खुला छोड़ देते हैं।  

इस प्रक्रिया द्वारा मिट्टियों में भली प्रकार से धूप लग जाती है। पालक के पौधों को उवर्रक की आवश्यकता होती है क्योंकि पालक की फ़सल की कई बार कटाई की जाती है। पालक की फसल के लिए 15 से 17 पुरानी गोबर की खाद की आवश्यकता होती है। यहां प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेतों में डाला जाता है। पालक के खेत में जलभराव की समस्या से छुटकारा पाने के लिए खेतों को समतल कर दिया जाता है। भूमि में पाटा लगाकर उसे पूर्ण रुप से समतल करते है इससे जलभराव नहीं होते। 

किसान कुछ रसायनिक खाद का भी इस्तेमाल करते हैं जैसे: रासायनिक खाद के स्वरूप में 40 केजी फास्फोरस, 30केजी नाइट्रोजन और 40 केजी पोटाश की मात्रा इत्यादि को यह आखरी जुताई के दौरान खेतों में छिड़ककर मिट्टी में मिक्स कर दिया जाता है। पौधों को तेजी से उत्पादन करने और कटाई के लिए 20 केजी की मात्रा में यूरिया का इस्तेमाल किया जाता है खेतों में छिड़क दिया जाता है। 

पालक के बीजों की रोपाई

पालक उन हरी सब्जियों में से एक है जिनको भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में साल भर बीजों द्वारा उगाया जाता है। लेकिन किसान पालक की रोपाई करने के लिए जो सबसे अच्छा और उपयुक्त महीना मानते हैं वह सितंबर और नवंबर के बीच का है। तथा पालक के पौधे जुलाई के महीने में और भी अच्छी तरह से उगते हैं। क्योंकि इस माह में बारिश होती है जो फसल के लिए बहुत ही लाभदायक साबित होती है। पालक के बीजों का रोपण किसान छिड़काव  और कुछ रोपण विधि द्वारा करते हैं। इन बीजों को लगभग 2 से 3 घंटे गोमूत्र में भिगोकर रखा जाता है। बीजों को अच्छी तरह से अंकुरित होने के लिए इनका रोपण लगभग 2 से 3 सेंटीमीटर की दूरी पर किया जाता है। 

पालक के पौधों की सिंचाई

पालक के बीजों की रोपाई करने के बाद भूमि को भली प्रकार से गीला रहना बहुत ही ज्यादा आवश्यक होता है। क्योंकि पौधों की अच्छी उत्पादकता प्राप्त करने के लिए अच्छी सिंचाई की आवश्यकता होती है। 

 भूमि में बीज रोपण करने के बाद पानी देने की प्रक्रिया को आरंभ कर देना चाहिए। किसान पालक की फसल में लगभग 5 से 7 दिन के बाद सिंचाई करते हैं। इन सिंचाई से अंकुरण अच्छे से होता है। तथा वर्षा ऋतु के मौसम में जब जरूरत दिखाई दे तभी खेतों में पानी दे। 

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं हमारा यह आर्टिकल पालक की बढ़ती मांग, ऑफ-सीजन पालक बोने, सर्दियों के सीजन में पालक की बुवाई तथा पालक से होने वाले मुनाफे इत्यादि की जानकारी हमारे इस आर्टिकल में मौजूद है। जो आपके बहुत काम आएगी हम यह आशा करते हैं कि हमारे इस आर्टिकल को आप ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया और अपने दोस्तों के साथ शेयर करें । धन्यवाद।

परती खेत में करें इन सब्जियों की बुवाई, होगी अच्छी कमाई

परती खेत में करें इन सब्जियों की बुवाई, होगी अच्छी कमाई

सितंबर महीने में अपने परती पड़े खेत में करें इन फली या सब्जियों की बुवाई

भारत के खेतों में मानसून की शुरुआत में बोयी गयी
खरीफ की फसलों को अक्टूबर महीने की शुरुआत में काटना शुरू कर दिया जाता है, पर यदि किसी कारणवश आपने खरीफ की फसल की बुवाई नहीं की है और जुलाई या अगस्त महीने के बीत जाने के बाद सितंबर में किसी फसल के उत्पादन के बारे में सोच रहे हैं, तो आप कुछ फसलों का उत्पादन कर सकते है, जिन्हें मुख्यतः सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

मानसून में बदलाव :

सितंबर महीने के पहले या दूसरे सप्ताह में भारत के लगभग सभी हिस्सों से मानसून लौटना शुरू हो जाता है और इसके बाद मौसम ज्यादा गर्म भी नहीं रहता और ना ही ज्यादा ठंडा रहता है। इस मौसम में किसी भी सीमित पानी की आवश्यकता वाली फसल की पौध को वृद्धि करने के लिए एक बहुत ही अच्छी जलवायु मिल सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में इस्तेमाल आने वाली सब्जियों की बुवाई मुख्यतः अगस्त महीने के अंतिम सप्ताह या फिर सितंबर में की जाती है।

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  • मटर की खेती

 15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में के साथ 400 मिलीमीटर की बारिश में तैयार होने वाली यह सब्जी दोमट और बलुई दोमट मिट्टी में उगाई जा सकती है। मानसून के समय अच्छी तरीके से पानी मिली हुई मिट्टी इसके उत्पादन को काफी बढ़ा सकती है।अपने खेत में दो से तीन बार जुताई करने के बाद इसके बीज को जमीन से 2 से 3 सेंटीमीटर के अंदर दबाकर उगाया जा सकता है।
मटर की खेती से संबंधित पूरी जानकारी और बीमारियों से इलाज के लिए यह भी देखें : जानिए मटर की बुआई और देखभाल कैसे करें
  • पालक की खेती

वर्तमान में उत्तरी भारत में पालक के लगभग सभी किसानों के द्वारा हाइब्रिड यानी कि संकर बीज का इस्तेमाल किया जाता है। 40 से 50 दिन में पूरी तरह से तैयार होने वाली यह सब्जी किसी भी प्रकार की मिट्टी में आसानी से उगाई जा सकती है, हालांकि इसकी पौध लगाने से पहले किसानों को मिट्टी की अम्लता की जांच जरूर कर लेनी चाहिए। 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य बेहतर उत्पादन देने वाली यह सब्जी पतझड़ के मौसम में सर्वाधिक वृद्धि दिखाती है। प्रति हेक्टेयर 20 से 30 किलोग्राम बीज की मात्रा से बुवाई करने के तुरंत बाद खेत की सिंचाई कर देनी चाहिए।
पालक की खेती के दौरान खेत को तैयार करने की विधि और इस फसल में लगने वाले रोगों से निदान के बारे में 
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  • पत्ता गोभी की खेती

सितंबर महीने के पहले या दूसरे सप्ताह में शुरुआत में नर्सरी में पौध उगाकर 20 से 40 दिन में खेत में पौध को स्थानांतरित कर उगायी जा सकने वाली यह सब्जी भारत में लगभग पूरे वर्ष भर इस्तेमाल की जाती है। 70 से 80 दिनों के अंतर्गत पूरी तरह तैयार होने वाली यह फसल पोषक तत्वों से भरपूर और अच्छी सिंचाई वाली मिट्टी में आसानी से बेहतरीन उत्पादकता प्रदान कर सकती है। ड्रिप सिंचाई विधि तथा उर्वरकों के सीमित इस्तेमाल से इस फसल की पत्तियों की ग्रोथ काफी तेजी से बढ़ती है। 15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में तैयार होने वाली यह सब्जी की फसल जब तक कुछ पत्तियां नहीं निकालती है, अच्छी मात्रा में पानी की मांग करती है। इस फसल की खास बात यह है कि इससे बहुत ही कम जगह में अधिक पैदावार की जा सकती है, क्योंकि इसके दो पौध के मध्य की दूरी 30 सेंटीमीटर तक रखनी होती है, इस वजह से एक हेक्टेयर में लगभग 20 हज़ार से 40 हज़ार छोटी पौध लगायी जा सकती है।
पत्ता गोभी फसल तैयार करने की संपूर्ण जानकारी और इसकी वृद्धि के दौरान होने वाले रोगों के निदान के लिए,
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  • बैंगन की खेती

भारत में अलग-अलग नामों से उगाई जाने वाली यह सब्जी 15 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान के मध्य अच्छी उत्पादकता प्रदान करती है। हालांकि, इस सब्जी की खेती खरीफ और रबी की फसल के अलावा पतझड़ के समय भी की जाती है। अलग-अलग प्रकार की मिट्टी में उगने वाली यह फसल अम्लीय मिट्टी में सर्वाधिक प्रभावी साबित होती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार एक हेक्टेयर क्षेत्र में बैंगन उत्पादित करने के लिए लगभग 400 से 500 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। इन बीजों को पहले नर्सरी में तैयार किया जाता है और उसके बाद खेत को अच्छी तरीके से तैयार कर 50 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए बुवाई जाती है। ऑर्गेनिक खाद और रासायनिक उर्वरकों के सीमित इस्तेमाल से 8 से 10 दिन के अंतराल पर बेहतरीन सिंचाई की मदद से भारत के किसान काफी मुनाफा कमा रहे है।
बैंगन की फसल से जुड़ी हुई अलग-अलग किस्म और वैज्ञानिकों के द्वारा जारी की गई नई विधियों की संपूर्ण जानकारी के लिए, 
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  • मूली की खेती

सितंबर से लेकर अक्टूबर के महीनों में उगाई जाने वाली यह सब्जी बहुत ही जल्दी तैयार हो सकती है। पिछले कुछ समय में बाजार में बढ़ती मांग की वजह से इस फसल का उत्पादन करने वाले किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे है। 15 से 20 सेंटीग्रेड के तापमान में अच्छी उत्पादकता देने वाली यह फसल उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी में अपनी अलग-अलग किस्मों के अनुसार प्रभावी साबित होती है। किसान भाई कृषि विज्ञान केंद्र से अपनी खेत की मिट्टी की अम्लीयत या क्षारीयता की जांच अवश्य कराएं, क्योंकि इस फसल के उत्पादन के लिए खेत की पीएच लगभग 6.5 से 7.5 के मध्य होनी चाहिए। सितंबर के महीने में अच्छी तरीके से खेत को तैयार करने के बाद गोबर की खाद का इस्तेमाल कर, 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की बुवाई करते हुए उचित सिंचाई प्रबंधन के साथ अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
मूली की फसल में लगने वाले कई प्रकार के रोग और इसकी अलग-अलग किस्मों की जलवायु के साथ उत्पादकता का पता लगाने के लिए, 
यह भी देखें : मूली की खेती (Radish cultivation in hindi)
  • लहसुन की खेती

ऊटी 1 और सिंगापुर रेड तथा मद्रासी नाम की अलग-अलग किस्म के साथ उगाई जाने वाली लहसुन की फसल लगभग 12 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में बोयी जाती है। पोषक तत्वों से भरपूर और अच्छी तरह से सिंचाई की हुई मिट्टी इस फसल की उत्पादकता के लिए सर्वश्रेष्ठ साबित होती है। प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 500 से 600 किलोग्राम बीज के साथ उगाई जाने वाली यह खेती कई प्रकार के रोगों के खिलाफ स्वतः ही कीटाणुनाशक की तरह बर्ताव कर सकती है। बलुई और दोमट मिट्टी में प्रभावी साबित होने वाली यह फसल भारत में आंध्र प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के अलावा गुजरात राज्य में उगाई जाती है। वर्तमान में भारतीय किसानों के द्वारा लहसुन की गोदावरी और श्वेता किस्मों को काफी पसंद किया जा रहा है। इस फसल का उत्पादन जुताई और बिना जुताई वाले खेतों में किया जा सकता है। पहाड़ी क्षेत्र वाले इलाकों में सितंबर के महीने को लहसुन की बुवाई के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, जबकि समतल मैदानों में इसकी बुवाई अक्टूबर और नवंबर महीने में की जाती है।
लहसुन की फसल से जुड़ी हुई अलग-अलग किस्म और जलवायु के साथ उनकी प्रभावी उत्पादकता को जानने के अलावा,
इस फसल में लगने वाले रोगों के निदान के लिए यह भी देखें : लहसुन को कीट रोगों से बचाएं
भारत के किसान भाई इस फसल के बारे में कम ही जानकारी रखते है, परंतु अरुगुला (Arugula) सब्जी से होने वाली उत्पादकता से कम समय में काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। इसे भारत में गारगीर (Gargeer) के नाम से जाना जाता है।यह एक तरीके से पालक के जैसे ही दिखने वाली सब्जी की फसल होती है जो कि कई प्रकार के विटामिन की कमी को दूर कर सकती है। पिछले कुछ समय से उत्तरी भारत के कुछ राज्यों में इस सब्जी की डिमांड बढ़ने की वजह से कई युवा किसान इसका उत्पादन कर रहे है। सितंबर महीने के दूसरे सप्ताह में बोई जाने वाली यह सब्जी वैसे तो किसी भी प्रकार की मिट्टी में अच्छा उत्पादन दे सकती है, परंतु यदि मिट्टी की ph 7 से अधिक हो तो यह अधिक प्रभावी साबित होती है। पानी के सीमित इस्तेमाल और जैविक खाद की मदद से इस फसल की वृद्धि दर को काफी तेजी से बढ़ाया जा सकता है। इस सब्जी की फसल की छोटी पौध 7 से 10 दिन में अंकुरित होना शुरू हो जाती है। बहुत ही कम खर्चे पर तैयार होने वाली यह फसल 30 दिन में पूरी तरीके से तैयार हो सकती है। दक्षिण भारत के राज्यों में इसकी बुवाई सितंबर महीने के दूसरे सप्ताह में शुरू हो जाती है, जबकि उत्तरी भारत में यह अक्टूबर महीने के पहले सप्ताह में बोयी जाती है। इस फसल के उत्पादन में बहुत ही कम सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है परंतु फिर भी नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के सीमित इस्तेमाल से उत्पादकता को 50% तक बढ़ाया जा सकता है।


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आशा करते हैं कि Merikheti.com के द्वारा किसान भाइयों को सितंबर महीने में बुवाई कर उत्पादित की जा सकने वाली फसलों के बारे में दी गई यह जानकारी पसंद आई होगी और यदि आप भी किसी कारणवश खरीफ की फसल का उत्पादन नहीं कर पाए है तो खाली पड़ी हुई जमीन में इन सब्जी की फसलों का उत्पादन कर कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकेंगे।
इन सब्जियों की खेती से किसान कम खर्चा व कम समय में अधिक आमदनी कर सकते हैं

इन सब्जियों की खेती से किसान कम खर्चा व कम समय में अधिक आमदनी कर सकते हैं

आज के समय में किसान भाई बागवानी की तरफ ज्यादा रुख कर रहे हैं। बतादें, कि पालक, राजमा, करेला और भिंडी की खेती करके कम वक्त में अधिक आमदनी अर्जित कर सकते हैं। ये सब्जियां लगभग 50 से 100 दिन की समयावधि में ही उत्पादित हो जाती हैं। ​यदि आप भी खेती किसानी किया करते हैं, तो यह खबर आपके लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकती है। आज हम आपको इस लेख में बताएंगे ऐसी 5 सब्जियों की खेती के विषय में जिनका उत्पादन कर आप पूरे माह में हजारों-लाखों रुपये की आमदनी कर सकते हैं। अब जानते हैं उन सब्जियों के बारे में जो किसानों को अच्छी-खासी आमदनी करा सकती हैं।

भिंडी की सब्जी

किसान भाई यदि प्रत्येक सब्जी में भिंड़ी का ही उत्पादन करता है तो वह निश्चित रूप से अच्छी-खासी आमदनी कर सकता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि भिंडी की फसल की बुवाई के मात्र 50 दिन के बाद तैयार हो जाती हैं। भिंडी की बुवाई करने में करीब 20 से 25 हजार रुपए लग जाते जाते हैं। इससे किसान करीब 80 क्विंटल तक की पैदावार हांसिल कर सकते हैं। वर्तमान में बाजार के अंदर भिंडी का भाव तीन हजार रूपए प्रति क्विंटल चल रहा है। यदि किसान 80 क्विंटल भिंडी का उत्पादन करता है। तब वह उससे लगभग 2 लाख रुपए तक का मुनाफा उठा सकते हैं।

पालक की सब्जी

बतादें, कि पालक की बुवाई किसान भाई तीन सीजन में कर सकते हैं। पालक की खेती के लिए किसी विशेष मृदा की आवश्यकता नहीं होती है। 17 हजार रुपये में लगभग 1 एकड़ भूमि में खेती हो सकती है। इससे लगभग 100 क्विंटल तक पैदावार मिलती है। बाजार में किसानों को इसके लिए औसतन 5 रुपये प्रति किलो का भाव प्राप्त होता है। पालक की खेती करने से किसान भाई काफी कम समय में करीब 50 हजार रुपये की आय कर सकते हैं।

राजमा की सब्जी

राजमा की फसल करीब 100 से भी कम दिन में पककर तैयार हो जाती है। 10 से 12 क्विंटल राजमा की पैदावार के लिए किसान भाइयों को लगभग 1 एकड़ में उत्पादन करना होता है। राजमा की फसल की कीमत बाजार में बेहद अच्छी है। किसानों को 1 क्विंटल राजमा की कीमत लगभग 11-12 हजार मिलती है। अब ऐसी स्थिति में वह लगभग 35 हजार रुपये लगाकर 1 लाख रुपये से ज्यादा उठा सकते हैं। ये भी पढ़े: गर्मियों के मौसम में ऐसे करें करेले की खेती, होगा ज्यादा मुनाफा

करेला की सब्जी

किसान भाई करेला की खेती करके अच्छी-खासी कमाई कर सकते हैं। दरअसल, करेला की फसल 50 से 55 दिन के अंदर तैयार हो जाती है। एक एकड़ खेती में लगभग 55 हजार रुपये का खर्चा होता है। इसमें लगभग 100 क्विंटल करेला की पैदावार हो जाती है। बाजार में भी इसकी अच्छी-खासी कीमत होती है। किसान कुछ ही दिनों के अंदर एक- से डेढ़ लाख रुपये तक की आमदनी कर सकते हैं।